व्यक्तिगत तथा सामूहिक श्रम द्वारा जीवन के साधन पैदा करना, मानव और समाज का आधार है।
चीजों का उत्पादन विनिमय के लिए करना, वर्ग विभाजित समाज का आधार है।
श्रम के औजारों का निजीकरण, सामंतवादी उत्पादन प्रक्रिया का आधार है।
श्रम के औजारों का सामूहीकरण, पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया का आधार है।
चीजों के उत्पादन तथा वितरण पर निजी नियंत्रण, शोषण व्यवस्था का आधार है।
हर वर्ग, उत्पादन व्यवस्था के भौतिक आधार पर, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक विचारों का तिलस्मी ढाँचा खड़ा कर लेता है जो उसके उत्पादन संबंधों से पूरी तरह असंबद्ध नजर आता है।
अनेकों ईश्वरों और अनेकों प्रकार के श्रम के आधार पर धार्मिक और जातीय विभाजन का तिलस्म सामंतवादी उत्पादन व्यवस्था की देन है।
एक ईश्वर और एक श्रम के आधार पर समानता का तिलस्म पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था की देन है।
राजसत्ता, संघर्षरत वर्गों के बीच संतुलन और शांति बनाये रखने के लिए, समाज के अंदर से पैदा समूह है जो वर्गों से असंबद्ध नजर आता है पर वास्तव में शक्तिशाली वर्ग के साथ ही खड़ा होता है।
निम्न मध्यवर्गीय, अपनी स्थिति और अपने हितों के कारण आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग का पिछलग्गू होता है और साथ ही वर्ग संघर्ष में कमजोर वर्ग के साथ एकजुट हो जाता है, और यही उसका अंतर्विरोध है।
भारत में मुख्य संघर्ष, फ़िलहाल, सामंतवादी और पूँजीवादी ताक़तों के बीच है। केंद्र में राजसत्ता पर क़ाबिज़ पार्टी अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पूँजी के एकीकरण में पूँजीवाद की पैरोकार है, तो जाति और भाषा के आधार पर खड़ीं व्यक्तिवादी पार्टियाँ सामंतवाद की पैरोकार हैं। निम्न मध्यवर्गीय अपने चरित्र के अनुसार सांप्रदायिकता, असहिष्णुता, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी आदि के ख़िलाफ़ लड़ाई के नाम पर सामंतवाद को ताक़त दे रहा है। और सिद्धांत की ताक़त से महरूम सर्वहारा तो संघर्ष में कहीं है ही नहीं।
चीजों का उत्पादन विनिमय के लिए करना, वर्ग विभाजित समाज का आधार है।
श्रम के औजारों का निजीकरण, सामंतवादी उत्पादन प्रक्रिया का आधार है।
श्रम के औजारों का सामूहीकरण, पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया का आधार है।
चीजों के उत्पादन तथा वितरण पर निजी नियंत्रण, शोषण व्यवस्था का आधार है।
हर वर्ग, उत्पादन व्यवस्था के भौतिक आधार पर, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक विचारों का तिलस्मी ढाँचा खड़ा कर लेता है जो उसके उत्पादन संबंधों से पूरी तरह असंबद्ध नजर आता है।
अनेकों ईश्वरों और अनेकों प्रकार के श्रम के आधार पर धार्मिक और जातीय विभाजन का तिलस्म सामंतवादी उत्पादन व्यवस्था की देन है।
एक ईश्वर और एक श्रम के आधार पर समानता का तिलस्म पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था की देन है।
राजसत्ता, संघर्षरत वर्गों के बीच संतुलन और शांति बनाये रखने के लिए, समाज के अंदर से पैदा समूह है जो वर्गों से असंबद्ध नजर आता है पर वास्तव में शक्तिशाली वर्ग के साथ ही खड़ा होता है।
निम्न मध्यवर्गीय, अपनी स्थिति और अपने हितों के कारण आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग का पिछलग्गू होता है और साथ ही वर्ग संघर्ष में कमजोर वर्ग के साथ एकजुट हो जाता है, और यही उसका अंतर्विरोध है।
भारत में मुख्य संघर्ष, फ़िलहाल, सामंतवादी और पूँजीवादी ताक़तों के बीच है। केंद्र में राजसत्ता पर क़ाबिज़ पार्टी अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पूँजी के एकीकरण में पूँजीवाद की पैरोकार है, तो जाति और भाषा के आधार पर खड़ीं व्यक्तिवादी पार्टियाँ सामंतवाद की पैरोकार हैं। निम्न मध्यवर्गीय अपने चरित्र के अनुसार सांप्रदायिकता, असहिष्णुता, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी आदि के ख़िलाफ़ लड़ाई के नाम पर सामंतवाद को ताक़त दे रहा है। और सिद्धांत की ताक़त से महरूम सर्वहारा तो संघर्ष में कहीं है ही नहीं।
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