किसी साथी ने उदाहरण के साथ अधिरचना तथा अंतर्वस्तु को समझाने के लिए कहा है। उनका वह पोस्ट अब नज़र नहीं आ रहा है पर विषय सभी के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए अपनी प्रतिक्रिया दे रहा हूँ ।
मान लीजिये आप किसी व्यक्ति का अध्ययन कर रहे हैं तो स्पष्ट है कि उसका शरीर ही है जो उसे उसके परिवेश से अलग पहचान देता है। पर उसी शरीर के बावजूद एक जड़ शरीर से अलग, एक जीवित व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान व्यक्तित्व के कारण होती है। इस प्रकार शरीर अधिरचना है तो व्यक्तित्व अंतर्रवस्तु है। भौतिक शरीर, सभी अंगों, माँसपेशियों तथा इंद्रियों सहित, उसकी अधिरचना होगी और व्यक्ति के रूप में उसका संपर्क बाहरी परिवेश के साथ, शरीर के अंगों और इंद्रियों के जरिए ही होता है। पर शरीर का नियंत्रण उसके व्यक्तित्व के द्वारा होता है। व्यक्तित्व मस्तिष्क और शरीर के अंदर होने वाली अनेकों क्लिष्ट जैविक प्रक्रियाओं का समुच्चय होता है। बाहरी परिवेश से सूचनाएँ इंद्रियों के द्वारा ग्रहण की जाती हैं और स्नायविक तंतुओं द्वारा मस्तिष्क के अंदर स्नायविक कोशिकाओं तक पहुँचती हैं। पहले से मौजूद सूचना और नई सूचना के आधार पर स्नायविक कोशिकाएँ नई सूचना का निर्माण करती हैं और शरीर के अंगों को स्नायविक तंतुओं के जरिए आवश्यक निर्देश देती हैं। स्नायु तंत्र (स्नायविक कोशिकाओं, स्नायविक तंतुओं की संरचना तथा जैविक प्रक्रिया को चलाने वाले अवयव जिनका समुच्चय व्यक्तित्व है) व्यक्ति की अंतर्वस्तु है जिसका परिवेश से सीधा संपर्क नहीं होता है। शरीर (अधिरचना) व्यक्ति को भौतिक रूप में परिवेश से अलग पहचान देता है पर स्नायविक तंत्र व्यक्ति के गुणों को निर्धारित करता है और शरीर को आवश्यकतानुसार निर्देश देता है। मस्तिष्क शरीर को प्रभावित करता है और शरीर मस्तिष्क को, और यही उनके बीच द्वंद्वात्मक संबंध है।
अब अगर हम स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में व्यक्तित्व पर ध्यान केंद्रित करें तो, रक्त संचार, हृदय स्पंदन, श्वास प्रक्रिया जैसी जैविक प्रक्रियाओं से संबंधित अवयव और स्नायविक तंतु अधिरचना हैं, और चिंतन, तर्क, विश्लेषण जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ जो चेतना का निर्माण करती हैं से संबंधित स्नायविक कोशिकाएं अंतर्वस्तु हैं। इस प्रकार जहाँ जैविक प्रक्रिया व्यक्तित्व की अधिरचना है तो मानसिक प्रक्रिया व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु है। जैविक प्रक्रिया जीवित कोशिकाओं को, मृत कोशिकाओं सहित, सारे परिवेश से अलग पहचान देती है, पर जैविक प्रक्रिया सहित व्यक्तित्व से संबंधित सभी कुछ का निर्धारण, मानसिक प्रक्रिया करती है। रक्त संचार, हृदय स्पंदन, श्वास प्रक्रिया जैसी जैविक प्रक्रियाओं का नियंत्रण भी उसी मानसिक प्रक्रिया के द्वारा होता है जिसके अंतर्गत चिंतन, तर्क, विश्लेषण जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ होती हैं और जिसका समुच्चय चेतना कहलाता है। मस्तिष्क (अंतर्रवस्तु) का संबंध, शरीर के अन्य अंगों (परिवेश) के साथ सीधे सीधे न होकर जैविक प्रक्रियाओं (अधिरचना) के द्वारा ही होता है। यहाँ ध्यान देने की जरूरत है कि मानसिक या जैविक सभी प्रक्रियाओं का आधार भौतिक है, पर यह भौतिक आधार शरीर की अन्य भौतिक संरचना से गुणात्मक रूप से भिन्न होता है। हर कोशिका में वही डीएनए होने के बावजूद स्नायविक कोशिकाएँ तथा स्नायविक तंतु कोशिकाएं दूसरे प्रकार की कोशिकाओं से गुणात्मक रूप से भिन्न होती हैं। शरीर के अंगों और इंद्रियों (बाहरी परिवेश) से सूचना जैविक प्रक्रियाओं (अधिरचना) के द्वारा मानसिक प्रक्रियाओं (अंतर्वस्तु) तक पहुँचायी जाती है और व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु (मानसिक प्रक्रिया) उसकी अधिरचना (जैविक प्रक्रियाओं) को नियंत्रित करती है। मानसिक प्रक्रिया (अंतर्वस्तु) का जैविक प्रक्रिया (अधिरचना) के साथ यही द्वंद्वात्मक संबंध है।
अब अगर हम स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु, मस्तिष्क के ऊपर ध्यान केंद्रित करें तो मस्तिष्क में चेतना के रूप में हम दो स्वतंत्र प्रक्रियाएँ पाते हैं। एक स्वत:स्फूर्त या अनभिज्ञ प्रक्रिया जो जीव के प्राकृतिक गुण के रूप में जैविक प्रक्रिया को नियंत्रित करती है जिनसे सजग तौर पर व्यक्ति अनभिज्ञ रहता है, जिसे अवचेतना कहा जाता है। किसी मरीज़ जिसे डाक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया है के अंदर चलने वाली ये प्रक्रियाएँ ही उसे मृत घोषित नहीं होने देती हैं। दूसरी सायश या भिज्ञ प्रक्रिया जो तर्क, कल्पना, विचार, व्यवहार जैसी चीजों का निर्माण करती है जिसे चेतन कहा जा सकता है और जिनका नियंत्रण सजग तौर पर स्वयं इसी प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। मस्तिष्क की क्लिष्ट संरचना में अरबों कोषिकाओं के भौतिक स्वरूप में कोई अंतर नहीं होता है पर विन्यास तथा भूमिका के अनुरूप, स्नायविक कोशिकाएँ अलग अलग समय पर या एक ही समय पर भिज्ञ और अनभिज्ञ दोनों प्रक्रिया में भूमिका निभा सकती हैं। भौतिक रूप से अवचेतन और चेतन मस्तिष्क के बीच कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं है, और जो विभाजन है वह प्रक्रिया के आधार पर है। अवचेतन मस्तिष्क चेतना की अंतर्वस्तु है और चेतन मस्तिष्क चेतना की अधिरचना है। मानसिकता अवचेतन का हिस्सा है और अप्रत्यक्ष तौर पर व्यक्ति की चेतन प्रक्रिया को अनजाने ही नियंत्रित करती है। व्यक्ति सजग रूप से अपनी तर्कबुद्धि के द्वार और अनजाने ही अपने व्यवहार के द्वारा अपनी मानसिकता और अवचेतन को प्रभावित करता है। मस्तिष्क की अंतर्वस्तु (अवचेतन) और अधिरचना (चेतन) के बीच का यही द्वंद्वात्मक संबंध है।
इस प्रकार अंतर्वस्तु की अंतर्वस्तु का विश्लेषण करते हुए आप प्रकृति के सूक्ष्मतम स्तर पर पहुँच जाते हैं जहाँ पदार्थ सूक्ष्मतम कणों के रूप में निरंतर गति में है, सभी कुछ प्रकृति के मूलभूत द्वंद्वात्मक नियम के अनुसार निरंतर बदल रहा है और सारी कायनात का मूल यही पदार्थ और यही शाश्वत नियम है। यही ज्ञान मार्क्सवाद का मूल आधार और अंतर्वस्तु है। जो लोग मार्कसवाद में संशोधन या विकसित किये जाने की बात करते हैं, वे भूल जाते हैं कि प्रकृति का मूल नियम द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ही मार्क्सवाद है और शाश्वत अपरिवर्तनीय है। जो कुछ विकासरत है वह है प्रकृति की अधिरचना न कि अंतर्वस्तु, और मार्क्सवाद के आधार पर अर्जित किया जा सकने वाला उस विकास का ज्ञान।
सुरेश श्रीवास्तव
19 जनवरी, 2016
मान लीजिये आप किसी व्यक्ति का अध्ययन कर रहे हैं तो स्पष्ट है कि उसका शरीर ही है जो उसे उसके परिवेश से अलग पहचान देता है। पर उसी शरीर के बावजूद एक जड़ शरीर से अलग, एक जीवित व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान व्यक्तित्व के कारण होती है। इस प्रकार शरीर अधिरचना है तो व्यक्तित्व अंतर्रवस्तु है। भौतिक शरीर, सभी अंगों, माँसपेशियों तथा इंद्रियों सहित, उसकी अधिरचना होगी और व्यक्ति के रूप में उसका संपर्क बाहरी परिवेश के साथ, शरीर के अंगों और इंद्रियों के जरिए ही होता है। पर शरीर का नियंत्रण उसके व्यक्तित्व के द्वारा होता है। व्यक्तित्व मस्तिष्क और शरीर के अंदर होने वाली अनेकों क्लिष्ट जैविक प्रक्रियाओं का समुच्चय होता है। बाहरी परिवेश से सूचनाएँ इंद्रियों के द्वारा ग्रहण की जाती हैं और स्नायविक तंतुओं द्वारा मस्तिष्क के अंदर स्नायविक कोशिकाओं तक पहुँचती हैं। पहले से मौजूद सूचना और नई सूचना के आधार पर स्नायविक कोशिकाएँ नई सूचना का निर्माण करती हैं और शरीर के अंगों को स्नायविक तंतुओं के जरिए आवश्यक निर्देश देती हैं। स्नायु तंत्र (स्नायविक कोशिकाओं, स्नायविक तंतुओं की संरचना तथा जैविक प्रक्रिया को चलाने वाले अवयव जिनका समुच्चय व्यक्तित्व है) व्यक्ति की अंतर्वस्तु है जिसका परिवेश से सीधा संपर्क नहीं होता है। शरीर (अधिरचना) व्यक्ति को भौतिक रूप में परिवेश से अलग पहचान देता है पर स्नायविक तंत्र व्यक्ति के गुणों को निर्धारित करता है और शरीर को आवश्यकतानुसार निर्देश देता है। मस्तिष्क शरीर को प्रभावित करता है और शरीर मस्तिष्क को, और यही उनके बीच द्वंद्वात्मक संबंध है।
अब अगर हम स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में व्यक्तित्व पर ध्यान केंद्रित करें तो, रक्त संचार, हृदय स्पंदन, श्वास प्रक्रिया जैसी जैविक प्रक्रियाओं से संबंधित अवयव और स्नायविक तंतु अधिरचना हैं, और चिंतन, तर्क, विश्लेषण जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ जो चेतना का निर्माण करती हैं से संबंधित स्नायविक कोशिकाएं अंतर्वस्तु हैं। इस प्रकार जहाँ जैविक प्रक्रिया व्यक्तित्व की अधिरचना है तो मानसिक प्रक्रिया व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु है। जैविक प्रक्रिया जीवित कोशिकाओं को, मृत कोशिकाओं सहित, सारे परिवेश से अलग पहचान देती है, पर जैविक प्रक्रिया सहित व्यक्तित्व से संबंधित सभी कुछ का निर्धारण, मानसिक प्रक्रिया करती है। रक्त संचार, हृदय स्पंदन, श्वास प्रक्रिया जैसी जैविक प्रक्रियाओं का नियंत्रण भी उसी मानसिक प्रक्रिया के द्वारा होता है जिसके अंतर्गत चिंतन, तर्क, विश्लेषण जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ होती हैं और जिसका समुच्चय चेतना कहलाता है। मस्तिष्क (अंतर्रवस्तु) का संबंध, शरीर के अन्य अंगों (परिवेश) के साथ सीधे सीधे न होकर जैविक प्रक्रियाओं (अधिरचना) के द्वारा ही होता है। यहाँ ध्यान देने की जरूरत है कि मानसिक या जैविक सभी प्रक्रियाओं का आधार भौतिक है, पर यह भौतिक आधार शरीर की अन्य भौतिक संरचना से गुणात्मक रूप से भिन्न होता है। हर कोशिका में वही डीएनए होने के बावजूद स्नायविक कोशिकाएँ तथा स्नायविक तंतु कोशिकाएं दूसरे प्रकार की कोशिकाओं से गुणात्मक रूप से भिन्न होती हैं। शरीर के अंगों और इंद्रियों (बाहरी परिवेश) से सूचना जैविक प्रक्रियाओं (अधिरचना) के द्वारा मानसिक प्रक्रियाओं (अंतर्वस्तु) तक पहुँचायी जाती है और व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु (मानसिक प्रक्रिया) उसकी अधिरचना (जैविक प्रक्रियाओं) को नियंत्रित करती है। मानसिक प्रक्रिया (अंतर्वस्तु) का जैविक प्रक्रिया (अधिरचना) के साथ यही द्वंद्वात्मक संबंध है।
अब अगर हम स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में व्यक्तित्व की अंतर्वस्तु, मस्तिष्क के ऊपर ध्यान केंद्रित करें तो मस्तिष्क में चेतना के रूप में हम दो स्वतंत्र प्रक्रियाएँ पाते हैं। एक स्वत:स्फूर्त या अनभिज्ञ प्रक्रिया जो जीव के प्राकृतिक गुण के रूप में जैविक प्रक्रिया को नियंत्रित करती है जिनसे सजग तौर पर व्यक्ति अनभिज्ञ रहता है, जिसे अवचेतना कहा जाता है। किसी मरीज़ जिसे डाक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया है के अंदर चलने वाली ये प्रक्रियाएँ ही उसे मृत घोषित नहीं होने देती हैं। दूसरी सायश या भिज्ञ प्रक्रिया जो तर्क, कल्पना, विचार, व्यवहार जैसी चीजों का निर्माण करती है जिसे चेतन कहा जा सकता है और जिनका नियंत्रण सजग तौर पर स्वयं इसी प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। मस्तिष्क की क्लिष्ट संरचना में अरबों कोषिकाओं के भौतिक स्वरूप में कोई अंतर नहीं होता है पर विन्यास तथा भूमिका के अनुरूप, स्नायविक कोशिकाएँ अलग अलग समय पर या एक ही समय पर भिज्ञ और अनभिज्ञ दोनों प्रक्रिया में भूमिका निभा सकती हैं। भौतिक रूप से अवचेतन और चेतन मस्तिष्क के बीच कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं है, और जो विभाजन है वह प्रक्रिया के आधार पर है। अवचेतन मस्तिष्क चेतना की अंतर्वस्तु है और चेतन मस्तिष्क चेतना की अधिरचना है। मानसिकता अवचेतन का हिस्सा है और अप्रत्यक्ष तौर पर व्यक्ति की चेतन प्रक्रिया को अनजाने ही नियंत्रित करती है। व्यक्ति सजग रूप से अपनी तर्कबुद्धि के द्वार और अनजाने ही अपने व्यवहार के द्वारा अपनी मानसिकता और अवचेतन को प्रभावित करता है। मस्तिष्क की अंतर्वस्तु (अवचेतन) और अधिरचना (चेतन) के बीच का यही द्वंद्वात्मक संबंध है।
इस प्रकार अंतर्वस्तु की अंतर्वस्तु का विश्लेषण करते हुए आप प्रकृति के सूक्ष्मतम स्तर पर पहुँच जाते हैं जहाँ पदार्थ सूक्ष्मतम कणों के रूप में निरंतर गति में है, सभी कुछ प्रकृति के मूलभूत द्वंद्वात्मक नियम के अनुसार निरंतर बदल रहा है और सारी कायनात का मूल यही पदार्थ और यही शाश्वत नियम है। यही ज्ञान मार्क्सवाद का मूल आधार और अंतर्वस्तु है। जो लोग मार्कसवाद में संशोधन या विकसित किये जाने की बात करते हैं, वे भूल जाते हैं कि प्रकृति का मूल नियम द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ही मार्क्सवाद है और शाश्वत अपरिवर्तनीय है। जो कुछ विकासरत है वह है प्रकृति की अधिरचना न कि अंतर्वस्तु, और मार्क्सवाद के आधार पर अर्जित किया जा सकने वाला उस विकास का ज्ञान।
सुरेश श्रीवास्तव
19 जनवरी, 2016
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