(मार्क्सिज्म स्टडी ग्रुप पर, मार्क्सवाद को पढ़ने का आग्रह करते हुए कामरेड नरुका का एक आलेख चस्पाँ किया गया है। इस आलेख से अनेक युवा प्रभावित नजर आते हैं, पर इस आलेख में मार्क्सवाद को जिस रूप में दर्शाया गया है, वह उसके लेखक की इस आशंका की पुष्टि करता है कि 'कुछ लोगों को यह राजनैतिक विचार सपना लगे'। कामरेड नरुका के प्रति पूरे आदर के साथ, एक स्वस्थ आलोचना के रूप में प्रस्तुत लेख, मार्क्सवाद के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है।)
कामरेड नरुका भी, पूरी ईमानदारी के साथ, वही ग़लती कर रहे हैं जो उनके पूर्ववर्ती वामपंथी करते आ रहे हैं। मार्क्सवाद को समझने का दावा करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवी, अपनी निम्न मध्यवर्गीय मानसिकता से बाहर आये बिना, मार्क्सवाद को मानवता जैसी भावना से ओतप्रोत एक राजनैतिक विचार के रूप में पिछली पीढ़ी से ग्रहण कर अगली पीढ़ी को परोस रहे हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह पिछली पीढ़ियाँ करती रही हैं। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की जिस अवधारणा को मार्क्स और एंगेल्स ने प्रकृति में सभी कुछ के अस्तित्व और उनमें होने वाले बदलावों के मूलभूत सिद्धांत के रूप में स्थापित किया था, उस सिद्धांत को मानव समाज की सामाजिक/राजनैतिक समझ तक सीमित कर, वामपंथियों ने मार्क्सवाद की अंतर्वस्तु को नेपथ्य में ढकेल कर, उसकी अधिरचना के एक भाग को - मूल अवधारणा की वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर निरंतर विकसित होते समाज से संबंधित ज्ञान को - ही संपूर्ण मार्क्सवाद के रूप में दर्शाने का प्रयास किया है, और इस प्रकार अधिरचना में होने वाले परिवर्तनों को मार्क्सवाद में निरंतर होने वाले विकास के रूप में दर्शा कर मार्क्सवाद को सिद्धांत की हैसियत से हटा कर एक अवधारणा की हैसियत में ला दिया है।
रूस और चीन की क्रांतियों की सफलता की चकाचौंध के कारण वामपंथियों की दृष्टि, मार्क्सवाद को पूँजीवाद के खिलाफ लड़ाई में एक राजनैतिक हथियार के रूप में देखने तक सीमित हो गयी है। अपने निम्नमध्यवर्गीय दृष्टिकोण के वशीभूत वे सामाजिक संरचना के भौतिक आर्थिक आधार की मूल्य, मुद्रा, पूंजी, अतिरिक्त मूल्य जैसी उन क्लिष्ट वैचारिक श्रेणियों के आपसी द्वंद्वों को समझने में नाकाम हैं जिनका सटीक विश्लेषण कर मार्क्स और एंगेल्स, वैज्ञानिक समाजवाद के जरिए, पूँजीवाद से साम्यवाद की ओर जाने का रास्ता दिखा सके थे। वामपंथियों ने अपनी मूलभूत निम्नमध्यवर्गीय मानसिकता के साथ, मार्क्सवाद को राजनैतिक सक्रियता तक सीमित कर, काल्पनिक समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद को गड्डमड्ड कर दिया है। अनेकों वामपंथी गुटों की मौजूदगी के बीच नौजवान पीढ़ी भ्रमित है कि कौन सा समाजवाद लाना है।
मार्क्स और एंगेल्स अपनी दार्शनिक समझ और सर्वहारा दृष्टिकोण के कारण, प्रकृति की मूलभूत संरचना और उसमें निरंतर होने वाले परिवर्तनों के द्वंद्व को सही सही समझ सके और उस द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत के आधार पर चेतना और अस्तित्व के जिस द्वंद्वात्मक संबंध को समझने में सफल रहे उसे समझने में उनके पूर्ववर्ती दार्शनिक नाकाम रहे थे। उनके अनुसार द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत शाश्वत और सर्वव्यापी है और प्रकृति के सूक्ष्मतम स्तर से लेकर विशालतम स्तर तक बिना किसी अपवाद के प्रभावी है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत और विश्लेषण की पद्धति, निर्जीव से लेकर जीव तक, पशु से लेकर मानव तक और मानव से लेकर समाज तक, सभी का हर परिस्थिति में सही सही विश्लेषण करने में सक्षम है। समस्याओं का विश्लेषण करने तथा उनका समाधान ढूँढने में मार्क्सवाद को एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल कर सकने की क्षमता विकसित करने के लिए, उस औज़ार का जीवन के हर आयाम में निरंतर इस्तेमाल करते रहना ज़रूरी है। जो लोग मार्क्सवाद के इस्तेमाल को राजनैतिक व्यवहार तक सीमित रखते हैं, पर अपने निजी और पारिवारिक जीवन में आचरण पारंपरिक गैर-मार्क्सवादी पद्धति के आधार पर करते हैं, वे कभी भी मार्क्सवाद को ठीक से नहीं समझ पायेंगे।
मार्क्स और एंगेल्स ने परिवार और निजी संपत्ति को मौजूदा समाज की सूक्ष्मतम इकाई के रूप में देखा था, और पारिवारिक इकाई पर लागू होने वाले द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के नियमों के विस्तार के आधार पर ही उन्होंने मानव समाज के विकास के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या की थी। जो वामपंथी, मज़दूर आंदोलनों तथा सक्रिय राजनीति में भागीदारी को मार्क्सवाद की समझ हासिल करने की पहली अनिवार्य सीढ़ी मानते हैं, उन्होंने मार्क्सवाद को समझा ही नहीं। मार्कसवाद की सही बुनियादी समझ के बिना सक्रिय राजनीति तथा आंदोलनों में भागीदारी, रूढ़िवादिता तथा संशोधनवाद को जन्म देती है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में दिन-ब-दिन पुख्ता होते जाते हैं। मार्क्सवाद की सही बुनियादी समझ के लिए, व्यक्तिगत था पारिवारिक जीवन में दिन प्रतिदिन की समस्याओं तथा परिवर्तनों का विश्लेषण द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर करते रहना ज़रूरी है। अधिकांश वामपंथियों को शायद पता ही नहीं है कि मार्क्स ने समाज में गुलामी आधारित अर्थव्यवस्था के भ्रूण की पहचान परिवार में स्त्री की गुलामी के रूप में की थी, और पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था के सर्वहारा मज़दूर का मूलरूप, आदिम परिवार में स्त्री सर्वहारा के रूप में रेखांकित किया था।
जो लोग सोचते हैं की भाषा की क्लिष्टता के कारण अनपढ़ मज़दूर किसान मार्क्सवाद को नहीं समझ सकते हैं, वे ऐसा इसलिए सोचते हैं क्योंकि वे मार्क्सवाद के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण रखते हैं और सोचते हैं कि मार्क्सवाद केवल एक हथियार है पूँजीवादी शोषण के खिलाफ लड़ने का और समतामूलक समाज बनाने का। वे यह नहीं समझते हैं कि मार्क्सवाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित एक पद्धति है जो व्यक्ति को चीजों को सही सही समझने और उनमें सार्थक हस्तक्षेप कर सकने की क्षमता प्रदान करती है, और सर्वहारा में यह दृष्टिकोण स्वत: ही विकसित हो जाता जब वह अपने जीवन के साधनों का आधार, श्रम के साधनों में न देखकर अपने सामूहिक श्रम में देखने लगता है। मज़दूर और किसान वर्ग में सर्वहारा चेतना के विस्तार का एक ही रास्ता है और वह है कि उनकी दिन प्रतिदिन की समस्याओं का विश्लेषण उनकी अपनी भाषा में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर किया जाय। उन्हें पूँजीवाद, समाजवाद, शोषण, क्रांति, वैश्वीकरण, वित्तीय पूँजी आदि जैसे शब्दों, जो उनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर हैं, के आधार पर मार्क्सवाद नहीं समझाया जा सकता है।
सुरेश श्रीवास्तव
12 जनवरी, 2016
कामरेड नरुका भी, पूरी ईमानदारी के साथ, वही ग़लती कर रहे हैं जो उनके पूर्ववर्ती वामपंथी करते आ रहे हैं। मार्क्सवाद को समझने का दावा करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवी, अपनी निम्न मध्यवर्गीय मानसिकता से बाहर आये बिना, मार्क्सवाद को मानवता जैसी भावना से ओतप्रोत एक राजनैतिक विचार के रूप में पिछली पीढ़ी से ग्रहण कर अगली पीढ़ी को परोस रहे हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह पिछली पीढ़ियाँ करती रही हैं। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की जिस अवधारणा को मार्क्स और एंगेल्स ने प्रकृति में सभी कुछ के अस्तित्व और उनमें होने वाले बदलावों के मूलभूत सिद्धांत के रूप में स्थापित किया था, उस सिद्धांत को मानव समाज की सामाजिक/राजनैतिक समझ तक सीमित कर, वामपंथियों ने मार्क्सवाद की अंतर्वस्तु को नेपथ्य में ढकेल कर, उसकी अधिरचना के एक भाग को - मूल अवधारणा की वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर निरंतर विकसित होते समाज से संबंधित ज्ञान को - ही संपूर्ण मार्क्सवाद के रूप में दर्शाने का प्रयास किया है, और इस प्रकार अधिरचना में होने वाले परिवर्तनों को मार्क्सवाद में निरंतर होने वाले विकास के रूप में दर्शा कर मार्क्सवाद को सिद्धांत की हैसियत से हटा कर एक अवधारणा की हैसियत में ला दिया है।
रूस और चीन की क्रांतियों की सफलता की चकाचौंध के कारण वामपंथियों की दृष्टि, मार्क्सवाद को पूँजीवाद के खिलाफ लड़ाई में एक राजनैतिक हथियार के रूप में देखने तक सीमित हो गयी है। अपने निम्नमध्यवर्गीय दृष्टिकोण के वशीभूत वे सामाजिक संरचना के भौतिक आर्थिक आधार की मूल्य, मुद्रा, पूंजी, अतिरिक्त मूल्य जैसी उन क्लिष्ट वैचारिक श्रेणियों के आपसी द्वंद्वों को समझने में नाकाम हैं जिनका सटीक विश्लेषण कर मार्क्स और एंगेल्स, वैज्ञानिक समाजवाद के जरिए, पूँजीवाद से साम्यवाद की ओर जाने का रास्ता दिखा सके थे। वामपंथियों ने अपनी मूलभूत निम्नमध्यवर्गीय मानसिकता के साथ, मार्क्सवाद को राजनैतिक सक्रियता तक सीमित कर, काल्पनिक समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद को गड्डमड्ड कर दिया है। अनेकों वामपंथी गुटों की मौजूदगी के बीच नौजवान पीढ़ी भ्रमित है कि कौन सा समाजवाद लाना है।
मार्क्स और एंगेल्स अपनी दार्शनिक समझ और सर्वहारा दृष्टिकोण के कारण, प्रकृति की मूलभूत संरचना और उसमें निरंतर होने वाले परिवर्तनों के द्वंद्व को सही सही समझ सके और उस द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत के आधार पर चेतना और अस्तित्व के जिस द्वंद्वात्मक संबंध को समझने में सफल रहे उसे समझने में उनके पूर्ववर्ती दार्शनिक नाकाम रहे थे। उनके अनुसार द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत शाश्वत और सर्वव्यापी है और प्रकृति के सूक्ष्मतम स्तर से लेकर विशालतम स्तर तक बिना किसी अपवाद के प्रभावी है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत और विश्लेषण की पद्धति, निर्जीव से लेकर जीव तक, पशु से लेकर मानव तक और मानव से लेकर समाज तक, सभी का हर परिस्थिति में सही सही विश्लेषण करने में सक्षम है। समस्याओं का विश्लेषण करने तथा उनका समाधान ढूँढने में मार्क्सवाद को एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल कर सकने की क्षमता विकसित करने के लिए, उस औज़ार का जीवन के हर आयाम में निरंतर इस्तेमाल करते रहना ज़रूरी है। जो लोग मार्क्सवाद के इस्तेमाल को राजनैतिक व्यवहार तक सीमित रखते हैं, पर अपने निजी और पारिवारिक जीवन में आचरण पारंपरिक गैर-मार्क्सवादी पद्धति के आधार पर करते हैं, वे कभी भी मार्क्सवाद को ठीक से नहीं समझ पायेंगे।
मार्क्स और एंगेल्स ने परिवार और निजी संपत्ति को मौजूदा समाज की सूक्ष्मतम इकाई के रूप में देखा था, और पारिवारिक इकाई पर लागू होने वाले द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के नियमों के विस्तार के आधार पर ही उन्होंने मानव समाज के विकास के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या की थी। जो वामपंथी, मज़दूर आंदोलनों तथा सक्रिय राजनीति में भागीदारी को मार्क्सवाद की समझ हासिल करने की पहली अनिवार्य सीढ़ी मानते हैं, उन्होंने मार्क्सवाद को समझा ही नहीं। मार्कसवाद की सही बुनियादी समझ के बिना सक्रिय राजनीति तथा आंदोलनों में भागीदारी, रूढ़िवादिता तथा संशोधनवाद को जन्म देती है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में दिन-ब-दिन पुख्ता होते जाते हैं। मार्क्सवाद की सही बुनियादी समझ के लिए, व्यक्तिगत था पारिवारिक जीवन में दिन प्रतिदिन की समस्याओं तथा परिवर्तनों का विश्लेषण द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर करते रहना ज़रूरी है। अधिकांश वामपंथियों को शायद पता ही नहीं है कि मार्क्स ने समाज में गुलामी आधारित अर्थव्यवस्था के भ्रूण की पहचान परिवार में स्त्री की गुलामी के रूप में की थी, और पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था के सर्वहारा मज़दूर का मूलरूप, आदिम परिवार में स्त्री सर्वहारा के रूप में रेखांकित किया था।
जो लोग सोचते हैं की भाषा की क्लिष्टता के कारण अनपढ़ मज़दूर किसान मार्क्सवाद को नहीं समझ सकते हैं, वे ऐसा इसलिए सोचते हैं क्योंकि वे मार्क्सवाद के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण रखते हैं और सोचते हैं कि मार्क्सवाद केवल एक हथियार है पूँजीवादी शोषण के खिलाफ लड़ने का और समतामूलक समाज बनाने का। वे यह नहीं समझते हैं कि मार्क्सवाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित एक पद्धति है जो व्यक्ति को चीजों को सही सही समझने और उनमें सार्थक हस्तक्षेप कर सकने की क्षमता प्रदान करती है, और सर्वहारा में यह दृष्टिकोण स्वत: ही विकसित हो जाता जब वह अपने जीवन के साधनों का आधार, श्रम के साधनों में न देखकर अपने सामूहिक श्रम में देखने लगता है। मज़दूर और किसान वर्ग में सर्वहारा चेतना के विस्तार का एक ही रास्ता है और वह है कि उनकी दिन प्रतिदिन की समस्याओं का विश्लेषण उनकी अपनी भाषा में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर किया जाय। उन्हें पूँजीवाद, समाजवाद, शोषण, क्रांति, वैश्वीकरण, वित्तीय पूँजी आदि जैसे शब्दों, जो उनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर हैं, के आधार पर मार्क्सवाद नहीं समझाया जा सकता है।
सुरेश श्रीवास्तव
12 जनवरी, 2016
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