Thursday, 18 August 2016

मार्क्सवाद की मूलभूत समझ के लिए कार्यशाला

मार्क्सवाद की मूलभूत समझ के लिए कार्यशाला
सोशल मीडिया पर, व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी, आरोप-प्रत्यारोप, कटाक्ष-चुटकुले आदि के रूप में नजर आनेवाली पोस्ट्स से मालूम होता है कि अधिकांश लोग सामाजिक समस्याओं के निदान में अपनी व्यक्तिगत भूमिका बहुत ही संकुचित दायरे में देखते हैं तथा जिस रूप में वे अपनी वह भूमिका निभा रहे हैं उस से संतुष्ट भी हैं, और मौजूदा भूमिका से हट कर किसी सामूहिक भूमिका के बारे में सोचना भी नहीं चाहते हैं। सोसायटी फ़ॉर साइंस का गठन सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग बुद्धिजीवियों को वैचारिक विमर्श के लिए एक मंच पर लाने के उद्देश्य से किया गया था ताकि वे समझ सकें कि सजग तौर पर न सही पर अवचेतन स्तर पर हर व्यक्ति कोई न कोई सामूहिक भूमिका भी निभा ही रहा है, तथा जरूरत इस बात की है कि वे अपनी सामूहिक भूमिका के प्रति भी सजग हों।
सोसायटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में 30 सदस्य हैं, फेसबुक ग्रुप में 315 हैं और मार्क्स दर्शन के ब्लॉग पर पिछले महीने 1000 हिट्स हैं। इन तीनों माध्यमों पर सैद्धांतिक लेखों पर कुछ की प्रतिक्रियाओं से यह माना जा सकता है कि कम से कम ऐसे सदस्यों, जो सामाजिक समस्याओं को हल करने में कोई सजग सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आतुर हैं, की संख्या दो दर्जन के लगभग तो होगी ही। पर सामूहिक विमर्श में सक्रिय भागीदारी से उनकी हिचक तथा औरों को नसीहतों के रूप में की गईं उनकी टिप्पणियाँ दर्शाती है कि सामाजिक परिवर्तन प्रक्रिया में वे अपनी किसी सार्थक सामूहिक भूमिका के प्रति आश्वस्त नहीं हो पाते हैं।
बिखरे हुए व्यक्तिगत प्रयासों के मुकाबले एकेंद्रित सामूहिक प्रयास अधिक प्रभावशाली तथा सार्थक होता है, यह प्राकृतिक नियम तथा साधारण ज्ञान है। अगर कोई व्यक्ति किसी सामूहिक काम में भूमिका निभाना चाहता है तो उसे सबसे पहले समूह के उद्देश्य की स्पष्ट समझ होना चाहिए। अगर सभी सदस्यों को समूह के उद्देश्य की स्पष्ट समझ नहीं होगी तो न तो उनके बीच वैचारिक एकजुटता हो सकेगी और न ही उनके प्रयास एकेंद्रित तथा प्रभावशाली हो सकेंगे। जनवादी केंद्रीयता का सिद्धांत, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (मात्रात्मक से गुणात्मक परिवर्तन) के इसी नियम पर आधारित है। सोसायटी की गतिविधियाँ अभी तक व्यक्तिगत स्तर पर ही चल रही हैं, और निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि सोसायटी के उद्देश्य से लोग पूरी तरह अनभिज्ञ हैं तथा अपनी आकांक्षाओं को ही सोसायटी के उद्देश्य का पर्याय मानते हैं।
सोसायटी अपने सीमित उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में प्रभावी क़दम बढ़ा सके, इसके लिए आवश्यक है कि सोसायटी के सदस्य व्यक्तिगत गतिविधियों से ऊपर उठकर एक समूह के रूप में भी काम कर सकें। व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधि के सामंजस्य को समझने के उद्देश्य से सोसायटी की मीटिंग 14 अगस्त 2016 को, ए-50,सेक्टर 19, नोएडा में बुलाई गई थी, जिसके लिए मेरे अलावा चार लोगों के आने की सूचना थी, पर दो ही लोग आ सके। जाहिर है न आनेवालों के लिए इस मीटिंग से अधिक महत्वपूर्ण कुछ और रहा होगा।
अनूप नोबर्ट ने सोसायटी के परिचय के लिए तैयार किया गया पर्चा दिया जिसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किये जाने की आवश्यकता तथा उसमें सोसायटी की भूमिका को विस्तार से समझाया गया है।
आम तौर पर लोगों की शिकायत होती है कि मार्क्सवादी अक्सर कठिन भाषा का प्रयोग करते हैं। उनका कहना है कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को आमजन की भाषा में समझाया जाना चाहिए ताकि आम आदमी उसे आसानी से समझ सके। वे यह भूल जाते हैं कि 'विज्ञान की राह कोई राजपथ नहीं है, और केवल उन्हें ही, जो उसके दुर्गम रास्ते की थकाने वाली चढ़ाइयों से ख़ौफ़ नहीं खाते हैं, उसके दैदीप्यमान शिखर पर पहुँचने का अवसर मिलता है'। हिंदी भाषी क्षेत्र मार्क्सवाद पर विमर्श से पूरी तरह अछूता है इस कारण हिंदी भाषा में शब्दावली का अभाव है तथा नई शब्दावली विकसित करने का दायित्व भी नई पीढ़ी पर ही है।
  इस मीटिंग में मौजूद अनूप नोबर्ट, अजय पटेल तथा सुरेश श्रीवास्तव के बीच सार्थक विमर्श हुआ। विमर्श को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है।
1. संगठन के रूप में सोसायटी का उद्देश्य।
2. उद्देश्य प्राप्ति के लिए सक्रिय सदस्यों को एकजुट कर सोसायटी को संगठन के स्तर पर ले जाना।
3. उद्देश्य की प्राप्ति के लिए की जानी वाली गतिविधियों के पहले क़दम के रूप में कार्यशाला का आयोजन।

सोसायटी का उद्देश्य
सुरेश श्रीवास्तव ने बताया कि सोसायटी का उद्देश्य, स्पष्ट तौर पर सोसायटी के ब्लॉग तथा फेसबुक ग्रुप पर दर्शाया गया है। परिवर्णी शब्द SCIENCE (Socially Conscious Intellectual' ENlightenment and CEphalisation), सोसायटी के उद्देश्यों को दर्शाता है। (Enlightenment and Cephalisation of those intellectuals who are conscious about their social responsibilities) सोसायटी का उद्देश्य उन बुद्धिजीवियों को ध्यान में रख कर तय किया गया है जो सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग हैं (Socially Conscious Intellectuals'), अर्थात ऐसे बुद्धिजीवी जो इस बात को समझते हैं कि समाज जिस दिशा में जा रहा है या जो कुछ हो रहा है, वह सब कुछ ठीक नहीं है तथा उसमें सजग हस्तक्षेप आवश्यक है। इन बुद्धिजीवियों में चिंतक, विचारक, राजनैतिक-आर्थिक आंदोलनों में सक्रिय कार्यकर्ता, विद्यार्थी, अध्यापक, साहित्यकार, आलोचक आदि सभी शामिल हैं जो किसी न किसी रूप में राजनैतिक-अर्थशास्त्र के वैचारिक दायरे में काम करते हैं, अर्थात वे सभी लोग जो समाज में विचारों के निर्माण का तथा उन्हें लोगों के बीच पहुँचाने का काम सजग तौर पर करते हैं, चाहे आजीविका के रूप में या स्वांत: सुखाय। चूँकि ये बुद्धिजीवी सामूहिक महत्व के विषयों पर विचारों का आदान प्रदान करते हैं इसलिए आवश्यक है कि वे स्वयं सही ज्ञान से लैस हों, इस कारण, बहु-आयामी ज्ञान अर्जन (ENlightenment), उनके अपने लिए तथा औरों के साथ एकजुट होने के लिए (Cephalisation), और लोगों की तुलना में, अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

2. सोसायटी को संगठन के स्तर पर ले जाना
जो लोग दलील देते हैं कि विचार-विमर्श तो बहुत हो लिया, सवाल है बदलने का, वे विचार-व्यवहार के द्वंद्वात्मक संबंध को नहीं समझते हैं। वे भूल जाते हैं कि अनुभव व्यक्तिगत होता है और ज्ञान सामूहिक होता है। व्यवहार से केवल व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त होता है, ज्ञान का विकास तो अनुभवों को साझा करने से ही विकसित होता है। अनुभव वस्तुपरक न होकर व्यक्तिपरक तथा पूर्वाग्रहों से प्रभावित होते हैं। पूर्वाग्रहों से मुक्त होने का मतलब है वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना, और उसके लिए अलग-अलग विषयों पर, वस्तुपरक विश्लेषण के स्पष्ट सामूहिक उद्देश्य के साथ, अपने जैसों के साथ, विषय केंद्रित आलोचनात्मक विमर्श करना ही एकमात्र रास्ता है।
विकास क्रम में उच्च स्तर की प्रजातियों के शरीर में प्रमुख रूप से तीन तरह की कोशिकाएँ होती हैं, स्नायविक-कोशिकाएँ, स्नायविक-तंतु तथा माँस-तंतु या ऊतक। स्नायविक कोशिकाएँ सूचनाओं के मिश्रण से विचारों का निर्माण करती हैं तथा विचारों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट कर सूचना में परिवर्तित करती हैं। स्नायविक-तंतु, मांसपेशियों तथा इंद्रियों और स्नायविक-कोशिकाओं के बीच सूचना के आदान प्रदान की भूमिका निभाते हैं। अलग-अलग अंगों के रूप में माँस-तंतुओं के द्वारा जैविक संरचना अपने परिवेश के साथ सूचना तथा पदार्थ का आदान-प्रदान करती है।
जैविक संरचना के अपने अस्तित्व के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्नायविक-कोशिकाओं के बीच सूचना का आदान-प्रदान स्फूर्त था प्रदूषण रहित हो। जैविक विकास क्रम में, स्नायविक-कोशिकाओं का अधिक से अधिक समीप आना तथा संगठित होना, एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। उच्चतम स्तर पर, खोपड़ी के अंदर कम से कम जगह में, ज्यादा से ज्यादा स्नायविक-कोशिकाओं का संगठित होना (Cephalsation), प्रजाति की बुद्धिमत्ता का द्योतक है। नृविज्ञानी (Anthropologist), प्रजातियों की बुद्धिमत्ता की तुलना के लिए Cephalic index शब्द का प्रयोग करते हैं।
जैविक संरचनाओं के विकास क्रम में मानव प्रजाति से ऊपर आता है, मानवसमाज; एक जीवंत सामाजिक-आर्थिक-संरचना। चिंतक-विचारक समाज की स्नायविक-कोशिकाएँ हैं, बुद्धिजीवी स्नायविक-तंतु हैं तथा आमजन माँस-तंतु या ऊतक हैं।
बौद्धिकों के बीच वैचारिक आदान प्रदान के लिए, भाषा तथा संचार तंत्र का विकास, प्राकृतिक नियम के अनुरूप ही है। प्रकृति के इसी नियम के अनुरूप, सोसायटी फ़ॉर साइंस ने, सजग प्रयास के द्वारा बुद्धिजीवियों को विमर्श के लिए एक मंच पर लाने का उद्देश्य अपने लिए तय किया है और अपने घोषित उद्देश्यों में CEphalisation को शामिल किया है।
और संगठनों की तरह, सोसायटी फ़ॉर साइंस का अस्तित्व भी एक जैविक संरचना के रूप में ही विकसित हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है कुछ ऐसे लोगों के एक समूह की जो सोसायटी की स्नायविक-कोशिकाओं की भूमिका निभा सकें, अपने आस-पास स्नायविक तंतुओं की भूमिका निभाने वाले लोगों को एकजुट कर सकें तथा विचार-विमर्श के लिए जगह जगह केंद्र विकसित कर सकें। हम जिस युग में रह रहे हैं उसमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे दिल्ली के आस-पास रह रहे हैं या देश भर में बिखरे हैं। आवश्यकता है, उनकी सोसायटी के उद्देश्यों तथा अपने साथियों के साथ प्रतिबद्धता की। बाकी सब तो जनवादी केंद्रीयता के सिद्धांत का ईमानदारी के साथ पालन करने पर, समय के साथ विकसित होता ही जायेगा।

3. कार्यशाला का आयोजन
जीवन को बेहतर बनाने के लिए वर्तमान में हासिल चीजों में अपेक्षित परिवर्तन कर पाने की क्षमता ही मानव को अन्य जीवों से श्रेष्ठ बनाती है। प्रकृति के नियमों की सही समझ के आधार पर, हासिल की जाने वाली चीजों की पूर्व कल्पना करना तथा सही कार्यनीति तय करना, अपेक्षित परिणाम हासिल कर पाने की प्रथम, अनिवार्य शर्त है। किसी भी हस्तक्षेप के परिणाम भी प्रकृति के नियमों के अनुसार ही होंगे।
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत, प्रकृति के मूलभूत सर्वव्यापी शाश्वत नियमों की व्याख्या करता है। विशिष्ट परिस्थितियो में लागू होने वाले विशिष्ट नियम, आधारभूत द्वंद्व के नियमों के आधार पर ही विकसित होते हैं। इस कारण, किसी भी व्यक्ति या संगठन के द्वारा, अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, किसी भी प्रकार के सजग हस्तक्षेप की रणनीति तय करने से पहले, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत तथा उसके आधार पर हासिल किये गये ज्ञान की पुख्ता समझ हासिल करना अनिवार्य शर्त है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की मूलभूत समझ न केवल व्यापक बुद्धिजीवी वर्ग के बीच पूरी तरह नदारद है, बल्कि राजनैतिक तथा आर्थिक दायरे में सक्रिय वामपंथी संगठनों के बीच भी पूरी तरह नदारद है।
इसी चीज को ध्यान में रखते हुए, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, चेतना-अस्तित्व तथा मूल्य-मुद्रा-पूंजी पर विमर्श करने के लिए पहली कार्यशाला आयोजित करने का प्रस्ताव रखा गया है।
आगे की कार्यवाही के लिए एक संयोजक समूह तथा एक प्रमुख संयोजक की आवश्यकता है, जो आपस में काम का बँटवारा कर सके। सुरेश श्रीवास्तव ने अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए संयोजक समूह में शामिल होने से मना कर दिया। उन्होंने आश्वस्त किया कि वे नौजवान साथियों के मार्ग दर्शन के लिए सदैव हाज़िर हैं तथा उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी दी जायेगी, उसे वे पूरा करेंगे। सक्रिय भागीदारी के लिए जिन्होंने इच्छा व्यक्त की है, उनमें से केवल दो ही उपस्थित हैं, इस कारण प्रमुख संयोजक का निर्णय फ़िलहाल टाल दिया गया है। आगे की कार्यवाही नोबर्ट तथा अजय मिल कर तय करेंगे।

निर्णय :
सुरेश श्रीवास्तव आज की कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर पोस्ट करेंगे।
नोबर्ट तथा अजय, एनसीआर तथा एनसीआर के बाहर के लोगों से संयोजक समूह में शामिल होने के लिए स्पष्ट स्वीकृति हासिल करेंगे।
संयोजक समूह की अगली बैठक जल्द से जल्द बुला कर, आगे की योजना को अंतिम रूप दिया जायेगा।

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