देश की, अर्धसामंतवादी-अर्धपूंजीवादी अर्थव्यवस्था का पूँजीवादी विकास की ओर बड़ा क़दम।
किसी भी सिद्धांत के बोझ से आजाद, क्रांति के आगे-आगे दौड़नेवाले अतिसक्रिय वामपंथी संशोधनवादी, या संशोधनवादी परंपरा का बोझ ढोते क्रांति के पीछे पैर घसीटते दक्षिणपंथी संशोधनवादी, पिछले 35 दिनों से जंतर मंतर पर धरने पर बैठे तामिलनाडु के किसानों के समर्थन में मीडिया में लंबे चौड़े बयान जारी करने में, किसी भी हालत में निम्नवध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों से पीछे नहीं दिखना चाहते हैं। वे महान मार्क्सवादी शिक्षकों की तस्वीरों पर माल्यार्पण करना नहीं भूलते हैं पर उनके सिखाये सबक़ों पर एक नजर भी नहीं डालना चाहते हैं।
लेनिन ने समझाया था, ' पूँजीवादी समाज में विज्ञान तथा तकनीकी की हर प्रगति अनिवार्य रूप से, बिना किसी मुरव्वत के लघु-उत्पादन के आधार को खोखला करती है, और यह समाजवादी राजनीतिक-अर्थशास्त्री का दायित्व है कि इस प्रक्रिया, अक्सर क्लिष्ट तथा पेचीदी, की उसके सभी रूपों में पड़ताल करे और लघु-उत्पादक को दर्शाये कि पूँजीवाद के तहत उसका अपने बल पर बचे रहना असंभव है, पूँजीवादी व्यवस्था के तहत कृषक आधारित कृषि-उत्पादन का कोई भविष्य नहीं है और किसान के लिए सर्वहारा के दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। इस प्रश्न पर संशोधनवादियों ने अपराध किया है, वैज्ञानिकता के अर्थ में, एकपक्षीय तथ्यों को चुनकर और संपूर्ण पूँजीवादी व्यवस्था के संदर्भ से काट कर, सतही तौर पर सर्वव्यापक दिखा कर। राजनीतिक दृष्टिकोण से उन्होंने अपराध किया है इस तथ्य के आधार पर कि चाहे या अनचाहे उन्होंने किसानों को, क्रांतिकारी सर्वहारा के नजरिये की जगह छोटे मालिकों के नजरिये को (अर्थात बुर्जुआ नजरिये को) अपनाने का आग्रह किया।'
और हमारे वामपंथी साथी क्या कहते हैं ? - 35 दिन वे झुलसती गर्मी में जंतर मंतर पर कर्जमाफी और न्यूनतम समर्थन मूल्यों में अभिवृद्धि के लिए स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा लागू करने की मांग कर रहे थे। स्वामीनाथन कमेटी कहती है कि किसानों को उनकी फसलों का लागत से डेढ़ गुना मूल्य दिया जाना चाहिए।
इन्हें इतनी सी बात समझ नहीं आती है कि वैश्विक विनिमय आधारित बाजार व्यवस्था में लागत मूल्य किसान के कहने से तय नहीं होगा, वह तो वैश्विक स्तर पर उत्पादन तकनीक और पूँजी निवेश से ही तय होगा।
नीति आयोग, कृषि क्षेत्र के लिए नया ए.पी.ऐम.सी. एक्ट (Model State/Union Territory (UT) Agricultural Produce Marketing (Development & Regulation) Act), लाने जा रही है उसमें जो नये प्रावधान सुझाये गये हैं उनमें से महत्वपूर्ण कुछ ये हैं,
- कॉंट्रेक्ट फ़ार्मिंग जिसके तहत छोटे बड़े हजारों किसानों की ज़मीनों पर खेती, बड़ी कंपनियों के नियंत्रण में की जायेगी, जो लागत कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा नई तकनीकों तथा मशीनों का इस्तेमाल करेंगी, जिस से ज्यादा से ज्यादा बटाईदार, खेत-मजदूर और छोटे बिचौलिए बेरोज़गार होकर सर्वहारा की क़तारों में शामिल हो जायेंगे।
- देश को टुकड़ों में बांटने वाले नोटीफाइड मार्केट एरिया के प्रावधानों को समाप्त कर पूरे देश को एकीकृत बाजार में तब्दील करना।'
- निजी क्षेत्र में थोक व्यापार यार्ड स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन और सुविधाएँ प्रदान करना।
और ये प्रावधान, भारतीय कृषि क्षेत्र में बड़े पूँजी निवेश और पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था के लिए द्वार खोल देंगे।
जिस शाश्वत नियम, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की पुख्ता समझ के आधार पर लेनिन सामंतवाद से पूँजीवाद में संक्रमण के प्राकृतिक नियम को पहचान सके थे, उस नियम की संशोधनवादी समझ के कारण हमारे वामपंथी साथी समझ ही नहीं पाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का चरित्र क्या है। सही हस्तक्षेप तो सही समझ के आधार पर ही हो पायेगा।
सुरेश श्रीवास्तव
24 अप्रैल, 2017
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