फेसबुक तथा व्हाट्सऐप पर सोसायटी फॉर साइंस का ग्रुप बनाये एक साल पूरा होने को आ रहा, पर सैद्धांतिक विमर्श के मंच के रूप में पहचान हासिल करने के अपने उद्देश्य में, कुछ सदस्यों की सदाशयता के बावजूद हम आज भी वहीं हैं जहां एक साल पहले थे। जो सदस्य इस मंच तथा उद्देश्य के महत्व को समझते हैं, उनसे मैं पुनः आग्रह करूंगा कि वे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की सही समझ के आधार पर चीजों का विश्लेषण करें तथा आगे की रणनीति तय करें।
मैं शुरू से सभी से आग्रह करता रहा हूं कि –
- चेतना तथा अस्तित्व के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- व्यक्तिगत तथा सामूहिक चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- भौतिक-सामाजिक-चेतना तथा वैचारिक-सामाजिक-चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- दैनिक जीवन के हर आयाम में, विश्लेषण करने, ज्ञान हासिल करने तथा कार्यनीति तय करने में द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग करें ताकि द्वंद्वात्मक पद्धति को समझने में तथा प्रयोग करने में पारंगत हो सकें।
फेसबुक तथा व्हाट्सऐप पर पिछले एक साल की गतिविधियों पर नजर डालने पर हम पाते हैं कि –
- कुछ सदस्यों को छोड़कर, अधिकांश सदस्य सोसायटी के मंच पर किसी भी प्रकार से भागीदारी नहीं करते हैं, जब कि वे और मंचों पर फोटो, चुटकुलों, कटाक्षों, कहानियों, कविताओं, टिप्पणियों, व्यक्तिगत समाचारों आदि के जरिए अपनी उपस्थिति निरंतर दर्ज कराते रहते हैं। जाहिर है उन्हें या तो सोसायटी के उद्देश्य के बारे में पता ही नहीं है, या वे आलोचना कर्म को क्रांतिकारी कर्म नहीं मानते हैं, या वे उद्देश्य की गंभीरता को नहीं समझते हैं।
- कुछएक सदस्य जो थोड़ी बहुत भागीदारी करते हैं उनमें से भी अधिकांश, विषय से भटक जाते हैं। एकाध ही हैं जो किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लक्ष्य के साथ विषय केंद्रित विमर्श के प्रति सतर्क रहते हैं।
- अधिकांश सदस्य सोसायटी के मीडिया एकाउंट्स को, सुरेश श्रीवास्तव के फेसबुक या व्हाट्सऐप एकाउंट की तरह देखते हैं, न कि सोसायटी के सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति के एक सक्रिय कार्यक्रम के रूप में।
- अधिकांश सदस्य, क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन के लिए, क्रांतिकारी आंदोलन को पहली तथा अंतिम शर्त मानते हैं। वे यह नहीं समझ पाते हैं कि क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना कोई क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हो सकता है, तथा क्रांतिकारी आंदोलन के लिए सही रणनीति का निर्माण कर सकने के लिए क्रांतिकारी सिद्धांत आवश्यक शर्त है, और क्रांतिकारी सिद्धांत विकसित करने के लिए आलोचना पहला क्रांतिकारी कर्म है।
द्वंद्वात्मक भौतिकवादी समझ के अनुसार कोई भी संगठन एक वैचारिक-जैविक-संरचना है जिसकी इकाइयां स्वायत्त होने के बावजूद एक साझा उद्देश्य की प्राप्ति के विचार से प्रेरित होकर एकजुट होती हैं और एक सामूहिक चेतना के तहत रणनीति तथा कार्यनीति तय करते हुए कार्यरत रहती हैं। चूंकि इकाइयां जीवित मनुष्य हैं इस लिए संगठन की हर इकाई की निजी चेतना भी होती है तथा साझा उद्देश्य के अलावा अनेकों निजी आकांक्षाएं भी होती हैं। पर संगठन की सामूहिक-चेतना, अपनी इकाइओं की चेतना का साधारण जोड़ न होकर, स्वयं एक स्वायत्त वैचारिक संरचना होती है जिसका जीवंत संबंध अपनी इकाइओं के साथ साझा उद्देश्य के विचार के जरिए ही होता है।
इसी समझ के आधार पर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित सिद्धांत, मार्क्सवाद की सही समझ के विकास तथा भारतीय जन-मानस के बीच विस्तार के उद्देश्य के साथ हम सब सोसायटी फॉर साइंस को एक संगठन का रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास के पहले कदम के रूप में फेसबुक तथा व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से हमने ऐसे लोगों को चिन्हित करने का प्रयास किया है जो साझा उद्देश्य के प्रति गंभीर हों। ऐसे लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए पिछले एक साल से विचार विमर्श कर रहे हैं। अब अगले कदम के रूप में ऐसे लोगों का रूबरू मिलना भी जरूरी है ताकि उनके बीच और बेहतर समझ विकसित हो सके तथा ग्रुप को, गुणात्मक रूप से भिन्न, संगठन के स्तर पर ले जाया जा सके। कब, कहां, कैसे मिलना है यह तय करने से पहले ऐसे लोगों, जो मीटिंग के लिए गंभीर हों, के नाम, पते, फोन नं तथा आम सहमति जरूरी है।
वे लोग, जो इस तरह की मीटिंग के लिए सैद्धांतिक तौर पर सहमत हैं, कृपया अपना नाम, पता, फोन नंबर व्यक्तिगत तौर पर मुझे या ग्रुप के जरिए जल्दी से जल्दी भेज दें।
सुरेश श्रीवास्तव
9810128813
Suresh_stva@hotmail.com
13-7-2016
मैं शुरू से सभी से आग्रह करता रहा हूं कि –
- चेतना तथा अस्तित्व के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- व्यक्तिगत तथा सामूहिक चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- भौतिक-सामाजिक-चेतना तथा वैचारिक-सामाजिक-चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध को ठीक से समझें।
- दैनिक जीवन के हर आयाम में, विश्लेषण करने, ज्ञान हासिल करने तथा कार्यनीति तय करने में द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग करें ताकि द्वंद्वात्मक पद्धति को समझने में तथा प्रयोग करने में पारंगत हो सकें।
फेसबुक तथा व्हाट्सऐप पर पिछले एक साल की गतिविधियों पर नजर डालने पर हम पाते हैं कि –
- कुछ सदस्यों को छोड़कर, अधिकांश सदस्य सोसायटी के मंच पर किसी भी प्रकार से भागीदारी नहीं करते हैं, जब कि वे और मंचों पर फोटो, चुटकुलों, कटाक्षों, कहानियों, कविताओं, टिप्पणियों, व्यक्तिगत समाचारों आदि के जरिए अपनी उपस्थिति निरंतर दर्ज कराते रहते हैं। जाहिर है उन्हें या तो सोसायटी के उद्देश्य के बारे में पता ही नहीं है, या वे आलोचना कर्म को क्रांतिकारी कर्म नहीं मानते हैं, या वे उद्देश्य की गंभीरता को नहीं समझते हैं।
- कुछएक सदस्य जो थोड़ी बहुत भागीदारी करते हैं उनमें से भी अधिकांश, विषय से भटक जाते हैं। एकाध ही हैं जो किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लक्ष्य के साथ विषय केंद्रित विमर्श के प्रति सतर्क रहते हैं।
- अधिकांश सदस्य सोसायटी के मीडिया एकाउंट्स को, सुरेश श्रीवास्तव के फेसबुक या व्हाट्सऐप एकाउंट की तरह देखते हैं, न कि सोसायटी के सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति के एक सक्रिय कार्यक्रम के रूप में।
- अधिकांश सदस्य, क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन के लिए, क्रांतिकारी आंदोलन को पहली तथा अंतिम शर्त मानते हैं। वे यह नहीं समझ पाते हैं कि क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना कोई क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हो सकता है, तथा क्रांतिकारी आंदोलन के लिए सही रणनीति का निर्माण कर सकने के लिए क्रांतिकारी सिद्धांत आवश्यक शर्त है, और क्रांतिकारी सिद्धांत विकसित करने के लिए आलोचना पहला क्रांतिकारी कर्म है।
द्वंद्वात्मक भौतिकवादी समझ के अनुसार कोई भी संगठन एक वैचारिक-जैविक-संरचना है जिसकी इकाइयां स्वायत्त होने के बावजूद एक साझा उद्देश्य की प्राप्ति के विचार से प्रेरित होकर एकजुट होती हैं और एक सामूहिक चेतना के तहत रणनीति तथा कार्यनीति तय करते हुए कार्यरत रहती हैं। चूंकि इकाइयां जीवित मनुष्य हैं इस लिए संगठन की हर इकाई की निजी चेतना भी होती है तथा साझा उद्देश्य के अलावा अनेकों निजी आकांक्षाएं भी होती हैं। पर संगठन की सामूहिक-चेतना, अपनी इकाइओं की चेतना का साधारण जोड़ न होकर, स्वयं एक स्वायत्त वैचारिक संरचना होती है जिसका जीवंत संबंध अपनी इकाइओं के साथ साझा उद्देश्य के विचार के जरिए ही होता है।
इसी समझ के आधार पर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित सिद्धांत, मार्क्सवाद की सही समझ के विकास तथा भारतीय जन-मानस के बीच विस्तार के उद्देश्य के साथ हम सब सोसायटी फॉर साइंस को एक संगठन का रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास के पहले कदम के रूप में फेसबुक तथा व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से हमने ऐसे लोगों को चिन्हित करने का प्रयास किया है जो साझा उद्देश्य के प्रति गंभीर हों। ऐसे लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए पिछले एक साल से विचार विमर्श कर रहे हैं। अब अगले कदम के रूप में ऐसे लोगों का रूबरू मिलना भी जरूरी है ताकि उनके बीच और बेहतर समझ विकसित हो सके तथा ग्रुप को, गुणात्मक रूप से भिन्न, संगठन के स्तर पर ले जाया जा सके। कब, कहां, कैसे मिलना है यह तय करने से पहले ऐसे लोगों, जो मीटिंग के लिए गंभीर हों, के नाम, पते, फोन नं तथा आम सहमति जरूरी है।
वे लोग, जो इस तरह की मीटिंग के लिए सैद्धांतिक तौर पर सहमत हैं, कृपया अपना नाम, पता, फोन नंबर व्यक्तिगत तौर पर मुझे या ग्रुप के जरिए जल्दी से जल्दी भेज दें।
सुरेश श्रीवास्तव
9810128813
Suresh_stva@hotmail.com
13-7-2016
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