आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, 18 सितंबर को उड़ी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले की जाँच करने पर भारतीय सेना इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि चारों आतंकवादियों द्वारा 16-17 सितंबर की रात सीमा पार करने के लिए सलामाबाद नाले के समीप बाड़ में थोड़ी सी खाली जगह का इस्तेमाल किया गया था। सूत्रों के मुताबिक़ आतंकवादियों में से एक सलामाबाद नाले के पास बाड़ में से थोड़ी सी ख़ाली जगह का इस्तेमाल कर इस पार आ गया। उसने इस तरफ से बाड़ पर एक सीढ़ी लगा दी जबकि दूसरी तरफ से उसके तीन साथियों ने दूसरी सीढ़ी लगा दी।दोनों सीढ़ियाँ उपरगामी पैदलपारपथ की तरह जोड़ दी गई थीं।
जिस थोड़ी सी जगह में से पहला आतंकवादी इस तरफ आया, उसमें से सभी चारों के लिए घुसपैठ करना मुश्किल था क्योंकि हरेक के पास भारी मात्रा में गोला-बारूद, हथियार और खाने पीने की चीज़ों वाले बड़े-बड़े बैग थे, और इस तरह पार करने में भारी जोखिम भी था क्योंकि उन्हें इस तरह बाड़ पार करने में काफी वक़्त लगता और ऐसा करते वक़्त इलाक़े में नियमित रूप से गश्त लगाने वाली सैन्य टुकड़ियाँ इन्हें देख सकती थीं।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जब चारों आतंकवादी भारत में घुस आये तब उन्होंने पहले आतंकवादी द्वारा लाई गई सीढ़ी अपने दो गाइडों मोहम्मद कबीर अवान और बशारत, जो उनके साथ नियंत्रण रेखा तक आये थे, को वापस सौंप दी ताकि किसी को कुछ पता न चले।
सेना गोहलान और समीप के जबलाह गाँव में जाँच कर रही है क्योंकि उसे संदेह है कि आतंकवादियों ने हमला करने से एक दिन पहले इन्हीं गाँवों में शरण ली होगी।
आतंकवादियों की ओर से सीढ़ी का इस्तेमाल कर बाड़ पार करने की घटना इसी साल पहले उत्तरी कश्मीर के माछिल सेक्टर में सामने आई थी।
एक सवाल यह उठता है कि, अगर भारी चौकसी के बावजूद, आतंकवादी सरहद पार कर चौबीस घंटे से ज्यादा तक भारतीय सीमा में छुपे रहे तथा सैन्य शिविर की भारी सुरक्षा के बावजूद इतनी बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने में कामयाब हो गये, और भारतीय सेना को हमले की ख़बर भी नहीं हो पाई, तो क्या इस बात की संभावना से पूरी तरह इनकार किया जा सकता है कि सीमा पार से होनेवाली बहुत सी आतंकवादी गतिविधियों की ख़बर पाकिस्तानी सेना को भी न हो पाती हो?
दूसरा सवाल यह उठता है कि, अगर सर्जिकल स्ट्राइक्स की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों और रक्षा सलाहकारों को दिया जा रहा है, तो क्या माछिल सेक्टर के बाद फिर उसी तरीके से उड़ी में होने वाली घुसपैठ को रोक पाने में सुरक्षा बलों की विफलता की ज़िम्मेवारी प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों तथा सुरक्षा सलाहकारों की नहीं बनती है?
एक निष्पक्ष सजग नागरिक के तौर पर मेरा प्रधानमंत्री से निवेदन है कि वे टीवी चैनलों के जरिए उन्माद फैलाने वालों को नजरंदाज कर, सभी मसलों पर शांतिपूर्ण समाधान के लिए, पाकिस्तान को बिना शर्त वार्ता के लिए आमंत्रित करें। वार्ता का मतलब यह नहीं है कि भारतीय सेना सर्जिकल स्ट्राइक का अपना विकल्प छोड़ दे। सभी मसलों में कश्मीर को शामिल किये जाने से भी परहेज़ नहीं होना चाहिए। वार्ता का मतलब यह नहीं होता है कि हम उनकी बात मान ही लें। सभी मसलों पर शांतिपूर्ण वार्ता का माहौल न केवल कश्मीरियों के हित में है बल्कि दोनों देशों की आम जनता के हित में भी है।
सुरेश श्रीवास्तव
17 अक्टूबर, 2016
जिस थोड़ी सी जगह में से पहला आतंकवादी इस तरफ आया, उसमें से सभी चारों के लिए घुसपैठ करना मुश्किल था क्योंकि हरेक के पास भारी मात्रा में गोला-बारूद, हथियार और खाने पीने की चीज़ों वाले बड़े-बड़े बैग थे, और इस तरह पार करने में भारी जोखिम भी था क्योंकि उन्हें इस तरह बाड़ पार करने में काफी वक़्त लगता और ऐसा करते वक़्त इलाक़े में नियमित रूप से गश्त लगाने वाली सैन्य टुकड़ियाँ इन्हें देख सकती थीं।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जब चारों आतंकवादी भारत में घुस आये तब उन्होंने पहले आतंकवादी द्वारा लाई गई सीढ़ी अपने दो गाइडों मोहम्मद कबीर अवान और बशारत, जो उनके साथ नियंत्रण रेखा तक आये थे, को वापस सौंप दी ताकि किसी को कुछ पता न चले।
सेना गोहलान और समीप के जबलाह गाँव में जाँच कर रही है क्योंकि उसे संदेह है कि आतंकवादियों ने हमला करने से एक दिन पहले इन्हीं गाँवों में शरण ली होगी।
आतंकवादियों की ओर से सीढ़ी का इस्तेमाल कर बाड़ पार करने की घटना इसी साल पहले उत्तरी कश्मीर के माछिल सेक्टर में सामने आई थी।
एक सवाल यह उठता है कि, अगर भारी चौकसी के बावजूद, आतंकवादी सरहद पार कर चौबीस घंटे से ज्यादा तक भारतीय सीमा में छुपे रहे तथा सैन्य शिविर की भारी सुरक्षा के बावजूद इतनी बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने में कामयाब हो गये, और भारतीय सेना को हमले की ख़बर भी नहीं हो पाई, तो क्या इस बात की संभावना से पूरी तरह इनकार किया जा सकता है कि सीमा पार से होनेवाली बहुत सी आतंकवादी गतिविधियों की ख़बर पाकिस्तानी सेना को भी न हो पाती हो?
दूसरा सवाल यह उठता है कि, अगर सर्जिकल स्ट्राइक्स की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों और रक्षा सलाहकारों को दिया जा रहा है, तो क्या माछिल सेक्टर के बाद फिर उसी तरीके से उड़ी में होने वाली घुसपैठ को रोक पाने में सुरक्षा बलों की विफलता की ज़िम्मेवारी प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों तथा सुरक्षा सलाहकारों की नहीं बनती है?
एक निष्पक्ष सजग नागरिक के तौर पर मेरा प्रधानमंत्री से निवेदन है कि वे टीवी चैनलों के जरिए उन्माद फैलाने वालों को नजरंदाज कर, सभी मसलों पर शांतिपूर्ण समाधान के लिए, पाकिस्तान को बिना शर्त वार्ता के लिए आमंत्रित करें। वार्ता का मतलब यह नहीं है कि भारतीय सेना सर्जिकल स्ट्राइक का अपना विकल्प छोड़ दे। सभी मसलों में कश्मीर को शामिल किये जाने से भी परहेज़ नहीं होना चाहिए। वार्ता का मतलब यह नहीं होता है कि हम उनकी बात मान ही लें। सभी मसलों पर शांतिपूर्ण वार्ता का माहौल न केवल कश्मीरियों के हित में है बल्कि दोनों देशों की आम जनता के हित में भी है।
सुरेश श्रीवास्तव
17 अक्टूबर, 2016
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