Thursday, 24 September 2015

माँस खाने पर पाबंदी क्यों?

माँस खाने पर पाबंदी क्यों?
खाद्य-चक्र पृथ्वी पर जीवन का आधार है। कार्बन-डाई-आक्साइड, पानी तथा सूर्य की रोशनी से सरलतम एंज़ाइम तथा प्रोटीन का निर्माण करने की क्षमता केवल वनस्पतियों में ही है, विकास के निम्नतम स्तर पर जीवों को शारीरिक रचना तथा जीवन के लिए आवश्यक एंज़ाइम तथा प्रोटीन के लिए वनस्पति जगत पर निर्भर रहना पड़ता है, पर विकास के साथ नई प्रजातियों की, अपनी क्लिष्ट शारीरिक संरचना तथा मानसिक क्षमता के लिए आवश्यक एंज़ाइम तथा प्रोटीन की ज़रूरत पूरी करने के लिए परस्पर निर्भरता बढ़ती गयी।
अपनी विकास यात्रा में मानव ने समाज के गठन के साथ कृषि तथा पशुपालन के जरिए, वनस्पतियों तथा पालतू पशुओं की अनेकों नई प्रजातियों को विकसित किया है जो उसकी अनेकों विशिष्ट एंज़ाइम तथा प्रोटीन की आवश्यकताएँ पूरी करते हैं तथा जिनका विकास मानवीय हस्तक्षेप के बिना असंभव था।
हाल के 10 हज़ार साल का समय,  जिसमें मानव ने पशुपालन तथा कृषि का विकास किया, बंदर से मानव बनने की 35 लाख साल की विकास यात्रा की तुलना में एक क्षण मात्र है। मानव मस्तिष्क की विशिष्ट संरचना था चिंतन की प्रक्रिया, जिसने भाषा तथा समाज के गठन को संभव बनाया है, के लिए आवश्यक क्लिष्टतम एंज़ाइम तथा प्रोटीन की पूर्ति, पशुपालन तथा कृषि विकास से पहले, केवल तरह-तरह के माँस भक्षण से ही संभव थी।
जो प्रकृति के विकास के नियम को नहीं मानते, उनके लिए अपने पूर्वाग्रह, कि मानव हमेशा से ही शाकाहारी रहा है तथा मांसाहार मानव की प्रकृति नहीं है, से छुटकारा पा पाना असंभव है। माँसाहार पर किसी भी प्रकार की पाबंदी लगाने का कोई औचित्य नहीं है सिवाय पूर्वाग्रह के।
25 सितंबर, 2015

No comments:

Post a Comment