राजग-2 की मुख्य भागीदार भाजपा के सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी और धार्मिक सहिष्णुता पर किये जा रहे हमलों को रोकने में मोदी सरकार की नाकामी के विरोध में, प्रतीकात्मक विरोधस्वरूप कई प्रगतिशील वामपंथी रचनाकर्मियों द्वारा अपने पुरस्कार लौटाये जा रहे हैं। संगठित हमलों का व्यक्तिगत प्रतिरोध ?!
दस साल में नौजवानों की एक नई पीढ़ी तैयार हो जाती है। यूपीए-1 तथा यूपीए-2 के दस सालों के दौरान, जब नयी पीढ़ी तैयार हो रही थी, जिसने वापस भाजपा के हाथों में सत्ता सौंपी है, उस समय हम बुद्धिजीवी रचनाकर्मी क्या कर रहे थे? क्या पिछले दस साल हम, शोषितों के लिए आभासी दुनिया के झुनझुने बजाकर, मध्यवर्गीय बौद्धिक श्रमजीवियों के लिए मनोविनोद तथा आत्मतुष्टि के साधन नहीं पैदा कर रहे थे, और क्या मुआवज़े (मज़दूरी) के तौर पर अपनी व्यक्तिगत संपन्नता तथा विलासिता के साधन और पुरस्कार नहीं बटोर रहे थे? मनोरंजन की क़ीमत चुका रहा था शारीरिक तथा बौद्धिक कामगार, और मज़दूरी चुका रहा था शोषक वर्ग, तो ज़ाहिर है मुनाफ़े का हक़दार भी शोषक वर्ग ही होगा। आज का नौनिहाल, जिसमें से अगले दस साल में नई पीढ़ी तैयार होनी है, हम से सवाल पूछ रहा है कि आगे का रास्ता क्या है? संगठित सत्ता का प्रतिरोध अस्मिता की राजनीति के रूप में विखंडित प्रतिरोध द्वारा कैसे होगा?
रास्ता तो 175 साल पहले कार्ल मार्क्स ने सुझा दिया था जब उन्होंने लिखा था, " आलोचना का हथियार, ज़ाहिर है, हथियार की आलोचना का स्थान नहीं ले सकता है, भौतिक शक्ति को भौतिक शक्ति से ही हटाया जा सकता है; पर सिद्धांत भी जनता के मन में घर कर लेने पर भौतिक शक्ति में परिवर्तित हो जाता है। सिद्धांत जनता के मन में घर कर लेने में सक्षम तब होता है जब वह पूर्वाग्रहों को बेनक़ाब करता है, और पूर्वाग्रहों को बेनक़ाब वह तब करता है जब वह मूलाग्रही होता है। मूलाग्रही होने का मतलब है चीजों को उनके मूल से समझना। लेकिन, मनुष्य के लिए, मनुष्य स्वयं मूल है" (The weapon of criticism cannot, of course, replace criticism of the weapon, material force must be overthrown by material force; but theory also becomes a material force as soon as it has gripped the masses. Theory is capable of gripping the masses as soon as it demonstrates ad hominem, and it demonstrates ad hominem as soon as it becomes radical. To be radical is to grasp the root of the matter. But, for man, the root is man himself.)
सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग बुद्धिजीवियों का दायित्व है कि, वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सिद्धांत की पुख्ता समझ स्वयं हासिल करें और, जनता के बीच, मूल्य तथा अतिरिक्त मूल्य के स्रोत, शोषण की प्रक्रिया, व्यक्तिगत तथा सामाजिक चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध, मानव के प्राकृतिक गुणों और सामाजिक गुणों आदि के बारे में फैले विभ्रम को बेनक़ाब कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सिद्धांत को जनता के मन में घर कर लेने में सक्षम बनाने का मार्ग प्रशस्त करें।
सुरेश श्रीवास्तव
18 अक्टूबर, 2015
दस साल में नौजवानों की एक नई पीढ़ी तैयार हो जाती है। यूपीए-1 तथा यूपीए-2 के दस सालों के दौरान, जब नयी पीढ़ी तैयार हो रही थी, जिसने वापस भाजपा के हाथों में सत्ता सौंपी है, उस समय हम बुद्धिजीवी रचनाकर्मी क्या कर रहे थे? क्या पिछले दस साल हम, शोषितों के लिए आभासी दुनिया के झुनझुने बजाकर, मध्यवर्गीय बौद्धिक श्रमजीवियों के लिए मनोविनोद तथा आत्मतुष्टि के साधन नहीं पैदा कर रहे थे, और क्या मुआवज़े (मज़दूरी) के तौर पर अपनी व्यक्तिगत संपन्नता तथा विलासिता के साधन और पुरस्कार नहीं बटोर रहे थे? मनोरंजन की क़ीमत चुका रहा था शारीरिक तथा बौद्धिक कामगार, और मज़दूरी चुका रहा था शोषक वर्ग, तो ज़ाहिर है मुनाफ़े का हक़दार भी शोषक वर्ग ही होगा। आज का नौनिहाल, जिसमें से अगले दस साल में नई पीढ़ी तैयार होनी है, हम से सवाल पूछ रहा है कि आगे का रास्ता क्या है? संगठित सत्ता का प्रतिरोध अस्मिता की राजनीति के रूप में विखंडित प्रतिरोध द्वारा कैसे होगा?
रास्ता तो 175 साल पहले कार्ल मार्क्स ने सुझा दिया था जब उन्होंने लिखा था, " आलोचना का हथियार, ज़ाहिर है, हथियार की आलोचना का स्थान नहीं ले सकता है, भौतिक शक्ति को भौतिक शक्ति से ही हटाया जा सकता है; पर सिद्धांत भी जनता के मन में घर कर लेने पर भौतिक शक्ति में परिवर्तित हो जाता है। सिद्धांत जनता के मन में घर कर लेने में सक्षम तब होता है जब वह पूर्वाग्रहों को बेनक़ाब करता है, और पूर्वाग्रहों को बेनक़ाब वह तब करता है जब वह मूलाग्रही होता है। मूलाग्रही होने का मतलब है चीजों को उनके मूल से समझना। लेकिन, मनुष्य के लिए, मनुष्य स्वयं मूल है" (The weapon of criticism cannot, of course, replace criticism of the weapon, material force must be overthrown by material force; but theory also becomes a material force as soon as it has gripped the masses. Theory is capable of gripping the masses as soon as it demonstrates ad hominem, and it demonstrates ad hominem as soon as it becomes radical. To be radical is to grasp the root of the matter. But, for man, the root is man himself.)
सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग बुद्धिजीवियों का दायित्व है कि, वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सिद्धांत की पुख्ता समझ स्वयं हासिल करें और, जनता के बीच, मूल्य तथा अतिरिक्त मूल्य के स्रोत, शोषण की प्रक्रिया, व्यक्तिगत तथा सामाजिक चेतना के द्वंद्वात्मक संबंध, मानव के प्राकृतिक गुणों और सामाजिक गुणों आदि के बारे में फैले विभ्रम को बेनक़ाब कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सिद्धांत को जनता के मन में घर कर लेने में सक्षम बनाने का मार्ग प्रशस्त करें।
सुरेश श्रीवास्तव
18 अक्टूबर, 2015
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