Thursday 16 September 2021

पार्टिकल फ़िज़िक्स और मार्क्सवाद

प्रकृति के साथ व्यवहार के दौरान अर्जित ज्ञान के आधार पर प्राकृतिक परिवेश को बदलना मानव का प्रकृति प्रदत्त गुण है और यही मानव तथा प्रकृति का द्वंद्वात्मक संबंध भी है। यही गुण मानव तथा मानव समाज को अन्य जीव जगत से अलग, गुणात्मक रूप से भिन्न जैविक संरचना की श्रेणी भी प्रदान करता है। जो ज्ञान व्यवहार के लिए मार्गदर्शन न कर सके वह ज्ञान निरर्थक है। मार्क्सवाद का सिद्धांत ही ज्ञान की वह शाश्वत मूल अवधारणा है जो हर परिस्थिति में सही रणनीति तथा कार्य नीति के लिए मार्गदर्शन करने में सक्षम है, और इसी सिद्धांत के आधार पर लेनिन द्वारा विकसित की गई जनवादी केंद्रीयता की अवधारणा, किसी भी क्रांतिकारी संगठन को वह तंत्र विकसित करने में उसका मार्ग दर्शन करती है, जो वर्ग विभाजित समाज की अत्याधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफल रणनीति तथा कार्य नीति विकसित करने तथा क्रियान्वयन करने में मदद कर सके। यथार्थ या अ-यथार्थ के सत्यापन के ऊपर बहस का कोई अर्थ नहीं, तथा किसी विचारधारा तथा उसके आधार पर विकसित की गई रणनीति की प्रासंगिकता पर बहस बेमानी है, यथार्थ तो अंतत: व्यवहार में ही सत्यापित होता है। भारत में वामपंथी आंदोलन के 100 साल का इतिहास इस बात को सत्यापित करता है कि जिस विचारधारा के आधार पर, आजादी की लड़ाई के दौरान देश में वामपंथी संगठन तथा आंदोलन खड़े किये गये थे वे मूल रूप से मार्क्सवाद के सिद्धांत की संशोधनवादी समझ के आधार पर खड़े किये गये थे। और जब तक इस दौर का पूरी तरह ख़ात्मा नहीं कर दिया जाता है, कोई वामपंथी आंदोलन सफलतापूर्वक नहीं चलाया जा सकता है। वर्ग संघर्ष में कामगारों को सफल नेतृत्व प्रदान कर सकने वाली पार्टी को एकजुटता प्रदान करने वाला तथा मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित मार्क्सवाद ही हो सकता है, तथा पार्टी के हर सदस्य के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना अनिवार्य शर्त है ताकि वह ज्ञान तथा व्यवहार के द्वंद्वात्मक विकास की गतिकी को समझ सके तथा उसका वास्तविक जीवन में इस्तेमाल कर सके। संगठन का नजरिया, विचार तथा रणनीति विकसित करने में विचार-विमर्श के क्रांतिकारी कर्म को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग बुद्धिजीवी, भारतीय वामपंथी आंदोलन के इस ऐतिहासिक यथार्थ को नजरंदाज नहीं कर सकते हैं कि हर दौर में नई पीढ़ी को, उसके नेतृत्व द्वारा मार्क्सवाद के नाम पर जो कुछ पढ़ाया जाता रहा है वह संशोधनवाद है तथा उसी के आधार पर वामपंथी समूह संगठित किये जाते रहे हैं, और ऐसे मंचों का नितांत अभाव रहा है जिनके जरिए नई पीढ़ी को वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में और मार्क्सवाद की सही समझ हासिल करने में मदद मिल सके। परिस्थितियों के बदलने तथा शिक्षा-दीक्षा से संबंधित वामपंथी भूल जाते हैं कि परिस्थितियाँ मनुष्य द्वारा ही बदली जाती हैं और स्वयं शिक्षा देनेवाले को शिक्षित किया जाना अनिवार्य है। और इसके लिए सही समझ विकसित करने के निश्चित ध्येय के साथ, अपने जैसे शिक्षार्थियों के साथ विचार-विमर्श अनिवार्य शर्त है। मार्क्सवाद की सही समझ विकसित करने के लिए विचार-विमर्श की अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए मैंने बीस साल पहले सोसायटी फॉर साइंस का मंच शुरू करने का निर्णय किया था और इस सोच से सहमति दर्शाने वालों को एकजुट कर SFS को एक औपचारिक संगठन का रूप देने का निरंतर प्रयास कर रहा हूँ पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। SFS फेसबुक ग्रुप तथा व्हाट्सएप ग्रुप पर विमर्श के नाम पर यदा कदा कुछ टिप्पणियां नजर आ जाती हैं। तीन चार बार कार्यशालाओं या ज़ूम मीटिंग के जरिए सैद्धांतिक विषयों पर विमर्श का प्रयास किया पर उसमें भी विफलता ही हाथ लगी। विश्लेषण करने पर पाता हूँ कि जिनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं हैं, उनके अपने पूर्वाग्रह हैं और वे अपने संगठन से अलग औपचारिक रूप से SFS से नहीं जुड़ना चाहते हैं। जाहिर है उनके संगठन का अनुशासन उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं देता है। कुछ लोग जिनकी प्रतिबद्धता किसी संगठन के साथ नहीं है वे अपनी टाइमलाइन या न्यूज़फ़ीड पर व्यक्तिगत टिप्पणियाँ कर के और अपने मित्रों के साथ फौरी हालात पर बहस कर के अधिक संतुष्ट हैं। नई पीढ़ी के कुछ युवा हैं जिनके लिए उनका रोजगार उनकी प्राथमिकता है। SFS का एक व्यक्ति से एक संगठन में बदल जाना एक गुणात्मक परिवर्तन होगा जिसके लिए SFS के उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध लोगों का एक न्यूनतम संख्या बल जरूरी है। सामंतवाद और पूँजीवाद के संक्रमणकाल में, व्यक्तिवादी बुर्जुआ सामाजिक चेतना के इस दौर में, आज की परिस्थितियों में निकट भविष्य में उस संख्या बल का जुट पाना असंभव लगता है। इसलिए SFS को फ़िलहाल अपनी मौजूदा गतिविधि को इसी रूप में जारी रखना होगा। उत्तर-उत्तर-आधुनिक काल में अनेकों बुद्धिजीवियों का दावा है कि कण की भौतिकी के बारे में नये ज्ञान की रोशनी में पारंपरिक मार्क्सवाद अप्रासंगिक हो गया है, इसलिए मार्क्सवाद की पुनर्व्याख्या करना जरूरी हो गया है। मेरा मानना है कि पारंपरिक मार्क्सवाद कण की व्याख्या करने और आज के वैज्ञानिकों को संतुष्ट करने में पूरी तरह सक्षम है। इसलिए द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और पार्टिकल फ़िज़िक्स पर एक चर्चा करने का प्रस्ताव है। मुख्य वक़्ता श्री अभिषेक श्रीवास्तव होंगे। जैसा मार्क्स ने कहा था, स्वयं शिक्षा देनेवाले को शिक्षित किया जाना अनिवार्य है। इसलिए सभी मान्य मार्क्सवादियों, जो किसी भी रूप में SFS के प्रति सकारात्मक विचार रखते हैं, से आग्रह है कि वे भी श्रोता के रूप में शामिल हो कर, विमर्श के जरिए वक़्ता को शिक्षित करने में अपनी भूमिका निभायें। अनूप नोबर्ट, अजय कबीर तथा दुर्गेश कुमार से आग्रह है कि वे तारीख तथा समय निश्चित कर ज़ूम मीटिंग की तथा शिक्षक तथा शिक्षार्थियों को आमंत्रित करने की व्यवस्था करें। सुरेश श्रीवास्तव 16 सितंबर 2021